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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।

उत्तर-

प्रस्तावना - ओमप्रकाश वाल्मीकि साहित्य जगत् के एकलब्ध प्रतिष्ठित रचनाकार हैं। उनका कृतित्व साहित्य के उस उत्कर्ष बिन्दु पर पहुँच गया है, जहाँ पहुँचने के लिए एक रचनाकार को अपने व्यक्तित्व के साथ सतत संघर्ष करना पड़ता है। वाल्मीकि जी एक ऐसे रचनाकार हैं, जो अपने साहित्य के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को न केवल जगाते हैं, अपितु चुनौती भी देते हैं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

व्यक्तित्व - 30 जून, 1950 ई० को जनपद मुजफ्फरनगर के ग्राम बरला में एक साधारण दलित परिवार में वाल्मीकि जी का जन्म हुआ। उनके माता का नाम मुकंदी देवी और पिता का नाम छोटन था। माता-पिता की स्नेह-छाया में पलते-बढ़ते बालक ओमप्रकाश की रुचि अभिरुचि आरम्भ से ही अपने घर-परिवार और परिवेश से भिन्न थी। पिता के अनथक प्रयासों के फलस्वरूप आपने शिक्षा जगत् में प्रवेश पाया। अनेक कठिनाइयों अभावों, अपमान और तिरस्कार के बीच भी शिक्षा के प्रति आपकी जिजीविषा कम नहीं हुई, बल्कि उत्तरोत्तर बढ़ती गई। आपने हिन्दी विषय में एम०ए० की डिग्री हासिल की। आपका चयन ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में सरकारी नौकरी में हो गया। इसी बीच अनुकूल वातावरण पाकर माँ सरस्वती की कृपा आप पर हुई और आप साहित्य-सृजन की ओर अग्रसर हुए। 17 नवम्बर, 2013 ई० को नियति के क्रूर हाथों ने वाल्मीकि जी को हमसे छीन लिया।

कृतित्व - ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का साहित्य जीवन-जगत् के अनुभवों का जीवन्त दस्तावेज है। इनका साहित्य दलितों के जीवन-संघर्ष और पीड़ा की यथार्थ अभिव्यक्ति है। इनकी रचनाओं का परिचय इस प्रकार है-

कविता-संग्रह - सदियों का संताप, बस! बहुत हो चुका।
कहानी-संग्रह - सलाम।
आत्मकथा - जूठन ।
संपादन - प्रज्ञा साहित्य (दलित साहित्य वि० )

पुरस्कार एवं सम्मान - 1993 ई० डॉ० अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार, 1995 ई० परिवेशन सम्मान, 1993 ई० प्रथम दलित लेखक-सम्मेलन नागपुर के अध्यक्ष, अनेक नाटकों में अभिनय एवं निर्देशन हेतु सम्मान |

'जूठन' (आत्मकथा) की समीक्षा

ओमप्रकाश वाल्मीकि कृत 'जूठन' आत्मकथा हमें बताती है कि दलित साहित्य में निम्न स्तर के लोगों का जीवन कितना कष्टपूर्ण और यातनामय था। यदि कोई इस निम्न जाति का बालक पढ़ना चाहता था तो उसके सामने कितनी परेशानियाँ आती थी अर्थात् उसे दलित जाति का दंश सदा भोगना पड़ता था। इस आत्मकथा में ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपनी ही व्यथा-कथा प्रस्तुत की है। समीक्षा की दृष्टि से 'जूठन' की समीक्षा इस प्रकार है-

1. कथानक — इस आत्मकथा का कथानक निम्न जाति के व्यक्तियों की व्यथा-कथा है। इसका कथानक उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के बरला गाँव से आरम्भ हुआ है। यह गाँव तगा अर्थात् त्यागी ब्राह्मणों का है। यहाँ की मलिन बस्ती में लेखक ओमप्रकाश का जन्म हुआ। ओमप्रकाश के नाम के पीछे लगा 'वाल्मीकि' शब्द स्पष्ट करता है कि उनका जन्म सफाई करने वाली और मैला उठाने वाली जाति में हुआ था। ओमप्रकाश तीव्र बुद्धि बालक था उसे पढ़ाई से विशेष लगाव था परन्तु ओमप्रकाश के पहले इस जाति के किसी भी बालक ने पढ़ने का साहस नहीं किया जबकि उनके गाँव में ही 'बरला इन्टर कॉलिज' था। ओमप्रकाश की पढ़ाई में लग्न देख उसके पिताजी ने उसे स्कूल में दाखिल करा दिया। ओमप्रकाश पिटा, ताने सुने, पर वह पढ़ता रहा। गाँव से परेशान होकर उसने अपने मामा के पास रहकर पढ़ने का निश्चय किया। उसके मामा देहरादून में नौकरी करते थे। उनका लड़का जसवीर ओमप्रकाश को वहाँ ले गया था। वहीं के एक पुस्तकालय में ओमप्रकाश का अम्बेडकर और दलित शब्दों से परिचय हुआ। रायपुर की आर्डिनेन्स फैक्ट्री में नौकरी के लिए ट्रेनिंग होनी थी। ओमप्रकाश उसके लिए चुन लिया गया और ट्रेनिंग के बाद उसे जबलपुर के पास की फैक्ट्री में नौकरी मिल गयी। वहाँ उसने शतरंज खेलना सीखा और नाटक क्लब बनाया। इसके बाद उसने बम्बई (मुम्बई) के पास अम्बरनाथ में ट्रेनिंग की और अच्छा वेतन पाने लगे। लेखक अपनी भाभी की बहन से विवाह करना चाहता था, पर उसका मामा उसे अपनी लड़की से बाँधना चाहता था। लेखक ने अपने मामा की बात नहीं मानी और अपनी भाभी की बहन चन्द्रकला से ही विवाह किया। लेखक के पहले माता, फिर पिता की मृत्यु हो चुकी थी। विवाह के पश्चात् नौकरी करता हुआ लेखक साहित्य-सृजन की ओर उन्मुख हुआ यद्यपि सामाजिक उपेक्षा का शिकार वह यहाँ भी रहा, लेकिन अपनी कर्त्तव्य निष्ठा के बल पर बुलन्दियों को छूता चला गया।

2. पात्र एवं चरित्र चित्रण - किसी भी गद्य विधा की रचना में उसके पात्र और चरित्र-चित्रण का विशेष महत्त्व होता है। इस आत्मकथा में मुख्य रूप से निम्नवर्गीय पात्र हैं, जो दलित जाति से सम्बद्ध है, साथ ही लेखक ने यहाँ गौण पात्रों के रूप में सवर्ण और मध्यमवर्गीय पात्रों का भी समावेश किया है। यदि पात्रों की संख्या की दृष्टि से देखा जाए, तो पूरी आत्मकथा में सौ से भी अधिक पात्र हैं। स्वयं लेखक मुख्य पात्र है। उसके पिता छोटन मामा, माता, कालीराम हैडमास्टर, भाई, पत्नी, भाभी, कमला ऐसे अनेक पात्र हैं, जिनसे न केवल कथ्य को गति मिलती है, अपितु लेखक का, समाज का चरित्रोद्घाटन भी होता है। पिता छोटन अनपढ़ थे, वे गाँव के तगा (त्यागी) जाति के यहाँ बेगार करते हैं। लेकिन चाहते हैं कि उनका पुत्र पढ़े और अपनी जाति के स्तर से ऊँचा उठकर अपने परिवार का नाम रोशन करे। लेखक की परीक्षा थी, लेकिन फौजीसिंह मना करने के बाद भी उसे जबरन खेतों में ईख बोने की बेगार के लिए ले गया। लेखक के पिता छोटन को जब यह मालूम हुआ, तो पुत्र की शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न करने वाले से लट्ठ लेकर लड़ने चल पड़े। इसी प्रकार कालीराम हैडमास्टर ने जब लेखक को स्कूल के पूरे मैदान में झाड़ू लगाने को कहा और जब यह क्रम तीन दिन तक चला तो लेखक के पिता ने उसे झाड़ू लगाते हुए देखा, तो लेखक रो पड़ा। उस स्थिति का वर्णन करते हुए लेखक कहता है-

"मेरी हिचकियाँ बँध गई थीं। हिचक- हिचक कर पूरी बात पिताजी को बता दी कि तीन दिन से रोज झाड़ू लगवा रहे हैं। कक्षा में पढ़ने भी नहीं देते। "

पिताजी ने मेरे हाथ से झाड़ू छीनकर दूर फेंक दी। उनकी आँखों में आग की गर्मी उतर आयी थी। हमेशा दूसरों के सामने तीर कमान बने रहने वाले पिताजी की लम्बी-लम्बी घनी मूँछें गुस्से में फड़फड़ाने लगी थीं। चीखने लगे - "कौण सा मास्टर वो द्रोणाचार्य की औलाद जो मेरे लड़के से झाड़ू लगवावे हैं।" 'जूठन' आत्मकथा के जहाँ सवर्ण अधिकतर निम्नवर्गीय पात्र लेखक से घृणा करते हैं, वहीं कुछ सवर्ण पात्र उसके प्रति मित्रवत भाव भी रखते हैं। प्रस्तुत आत्मकथा 'जूठन' में लेखक ने पात्र एवं चरित्र-चित्रण की दृष्टि से सर्वोपरि बनाने का प्रयास किया है।

3. संवाद अथवा कथोपकथन – गद्य विधाओं में संवादों का विशेष महत्त्व होता है। आत्मकथा में संवादों का महत्त्व इसलिए भी अधिक होता है; क्योंकि लेखक जीवन्त रूप से उसमें समाहित होता है, जबकि उपन्यास अथवा कहानी में कथा अधिकांश काल्पनिक होती है और रचनाकार उसमें मनोवांछित संवाद अपने पात्रों से कहलवा सकता है। आत्मकथा में पात्र लेखक स्वयं होता है, तो संवादों चयन और उनकी अभिव्यक्ति बहुत सोच-विचार कर करनी पड़ती है। लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि ने 'जूठन' आत्मकथा में पर्याप्त संवादों का प्रयोग किया है, जो पात्रानुकूल, देशकाल - वातावरण के अनुकूल और पात्रों के चरित्रोद्घाटन में सहायक हैं। ग्रामीण पात्रों की भाषा और उच्चारण देहाती है। जब लेखक के पिता हैडमास्टर की शिकायत लेकर ग्राम प्रधान के पास पहुँचते हैं तो ग्राम प्रधान और लेखक के मध्य संवाद का चित्र देखिए-

प्रधान जी ने मुझे पास बुलाकर पूछा- "कौण सी किलास में पढ़े है?"
"जी चौथी में।"
"म्हारे महेन्द्र की किलास में ही है।"
"जी।"
प्रधान जी ने पिताजी से कहा- "फिकर ना कर, कल मदरसे में इसे भेज देना।"

जब स्कूल से वरदी मिली तो उस पर इस्तरी की समस्या थी। मेरी कक्षा में एक धोबी का लड़का था। मैंने उससे कहा तो उसने शाम को घर आने के लिए कहा। शाम को जब मैं उसके घर वर्दी लेकर पहुँचा तो उसका बाप जोर से चिल्लाया-

"अबे चूहड़े के किधे (किधर घुसा आ रहा है। ) "
उसका बेटा पास ही खड़ा था। मैने कहा- "वर्दी पर इस्तरी करानी है। "
"हम चूहड़ों, जाटवों के कपड़े नहीं धोते, न इस्तरी करते। "

ग्रामीण महिलाओं के परस्पर वार्तालाप का एक उदाहरण देखिए-

"पूछने वाली महिला ने आश्चर्य से हिरम को देखा। मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए उसी सुर में बोली-
"तू भी पढ़े है?"
मैंने 'हाँ' में गर्दन हिलायी।
"तू कोण-सी किलास में है?"
"नौवीं की परीक्षा दी है। "
उसकी आँखें ताज्जुब से भर गई - "तू दिक्खे तो इससे छोटा है। "
" जी हाँ " - मैंने कहा।

'चूहड़ों के जाकत (बच्चे ) भी पढ़ने जावै हैं-मदरसे में।" 

उसे आश्चर्य हो रहा था।

इस 'जूठन' आत्मकथा में व्यक्ति की स्थिति, शिक्षा और मनोवृत्ति होती है वह वैसे ही संवाद बोलता दिखाई देता है। यथा - सविता ने ओमप्रकाश से कहा - "इन पत्थरों की मूर्तियों में मेरा कोई विश्वास नहीं।"

वह जिद करने लगी- "चलो मन्दिर चलते हैं। सुदामा दादा ( बड़े भाई ) भी अन्दर हैं।" "हाँ पाटिल अन्दर हैं। आप ही जाओ। मैं यहाँ ठीक हूँ।"

4. भाषा-शैली- 'जूठन' के अधिकांश पात्र अनपढ़ हैं। वे मुजफ्फरनगर और मेरठ की देहाती भाषा बोलते हैं। देहाती भाषा सभी प्रान्तों से भिन्न होती है। अतः इन लोगों की भाषा भी भिन्न है। अर्थात् 'जूठन' में पात्र जिस प्रकार भिन्न है उसी प्रकार उनकी भाषा भी भिन्न है। वर्णन की भाषा स्वयं लेखक की है। भाषा के अन्तर्गत संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। इस आत्मकथा की परिनिष्ठित भाषा का एक उदाहरण प्रस्तुत है—

"इस बार बस्ती के लोगों ने बेगार करने से मना कर दिया था। दिहाड़ी ( दैनिक मजदूरी ) दोगे तो जायेंगे, इस बात पर तनातनी हो गयी थी। जो व्यक्ति बुलाने आया था, वह तहसील का कोई चतुर्थ श्रेणी का मुलजिम था लेकिन उसका रौब- दाब किसी अधिकारी से कम नहीं था। बात-बात में अबे -तबे कर रहा था। लेकिन सभी लोग एक-एक कर इधर-उधर खिसकने लगे थे। उसे बैरंग लौटना पड़ा था।"

ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपनी चूहड़ बस्ती का वर्णन बड़े विस्तार से किया है। यह बात अलग है कि इस भाषा में चूहड़ बस्ती का चित्रण भद्दा और अश्लील बनाता है।

"जोहड़ी के किनारे पर चूहड़ों के मकान थे, जिनके पीछे गाँव भर की औरतें, जवान लड़कियाँ, बड़ी-बूढ़ी यहाँ तक कि नई-नवेली दुल्हनें भी इसी डब्बों वाली के किनारे खुले में टट्टी फरागत के लिए बैठ जाती थीं। रात के अँधेरे में ही नहीं दिल के उजाले में भी पर्दों में रहने वाली त्यागी महिलाएँ घूँघट काढ़े, दुशाला ओढ़े इस सार्वजनिक शौचालय में निवृत्ति पाती थीं। तमाम शर्म लिहाज छोड़कर वे डब्बों वाली के किनारे गोपनीय जिस्म उघाड़कर बैठ जाती थीं। इसी जगह गाँव भर के लड़ाई-झगड़े, गोलमेज कान्फ्रेंस की शक्ल में चर्चित होते थे। चारों तरफ गन्दगी में घूमते सूअर, नंग-धड़ंग बच्चे, कुत्ते, रोजमर्रा के झगड़े, बस यह था, वह वातावरण, जिसमें बचपन बीता। इस माहौल में यदि वर्ण व्यवस्था कहने वालों को दो-चार दिन रहना पड़ जाये तो उनकी राय बदल जायेगी। "

इस उद्धरण में मकान, जवान, दुल्हनें, फरागत, पर्दों, तमाम, शर्म-लिहाज, जिस्म, शक्ल, रोजमर्रा, माहौल, राय-ये शब्द उर्दू के हैं। गोलमेज कांफ्रेंस शब्द अंग्रेजी का है। संस्कृत के तत्सम शब्द हैं- त्यागी, महिलाएँ, दुशाला, सार्वजनिक, शौचालय, निवृत्ति, गोपनीय, चर्चित, दुर्गन्ध, वातावरण, वर्णव्यवस्था, आदर्श, व्यवस्था। यहाँ ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपने घर के आस-पास के वातावरण का जीता-जागता वर्णन किया है। इस उदाहरण में कोई स्थानीय शब्द नहीं है। लेकिन ओमप्रकाश वाल्मीकि ने वास्तविकता का प्रभाव बनाने के लिए स्थानीय शब्दों का भी प्रयोग किया है।

ओमप्रकाश ने चूँकि यह अपनी आत्मकथा लिखी है तो इसकी शैली आत्मकथात्मक एवं वर्णनात्मक है।

5. देश, काल और वातावरण - किसी भी गद्य साहित्य में उसके देश, काल और वातावरण का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। देश का तात्पर्य होता है कि सम्बन्धित घटना किस स्थान पर घटित हुई। 'जूठन' आत्मकथा का स्थान प्रमुख रूप से मुजफ्फरनगर जिले का बरला गाँव है। गाँव में अधिकांश आबादी तगों की थी। गाँव से बाहर चूहड़ों की बस्ती थी। कथानक में इसी बस्ती का वर्णन अधिक है। जैसे- उसी बगड़ में हमारा परिवार रहता था। पाँच भाई, एक बहन, दो चाचा, एक ताऊ का परिवार। चाचा और ताऊ का परिवार। चाचा और ताऊ अलग रहते थे। घर में सभी न कोई न कोई काम करते थे। फिर भी दो जून की रोटी नहीं चल पाती थी। तगाओं के घर में साफ-सफाई से लेकर खेती-बाड़ी, मेहनत-मजदूरी सभी काम होते थे। ऊपर रात- बेरात बेगार करनी पड़ती। बेगार के बदले में कोई पाई - पैसा या अनाज नहीं मिलता था। बेगार के लिए ना करने की हिम्मत किसी में नहीं थी। उम्र में बड़ा हो तो 'आ चूहड़े' बराबर या उम्र में छोटा हो तो 'अबे चूहड़े' यही तरीका था सम्बोधन का।

'जूठन' आत्मकथा का काल भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद का है। लेखक ने स्पष्ट लिखा है कि "उन दिनों आजादी मिले आठ साल हो गए थे। चारों तरफ गाँधी जी के अछूतोद्धार की प्रतिध्वनि सुनाई दे रही थी। सरकारी स्कूलों के द्वार अछूतों के लिए खुलने शुरू हो गए थे, लेकिन अपनी जनसामान्य की मानसिकता में कोई अन्तर नहीं आया था। लेखक ने अपनी आत्मकथा 'जूठन' में वातावरण का विशेष रूप से ध्यान रखा है। अपने मोहल्ले के गन्दे वातावरण और घृणित होने का भी शिष्ट और शालीन भाषा में परिचय दिया है।"

6. उद्देश्य - आत्मकथा 'जूठन' का उद्देश्य दलितों में भी निम्न स्तर के वाल्मीकियों की निकृष्टतम स्थिति से अवगत कराना है। शासन के आदेशानुसार सभी को शिक्षा पाने का अधिकार है। परन्तु उच्च वर्ग के समाज और शिक्षकों की भावना आज भी रूढ़िग्रस्त है। वे उसके प्रवेश में आनाकानी करते हैं और अगर प्रवेश मिल भी जाता है, तो वे उस पर इतने अत्याचार और शोषण करते हैं कि वह मजबूर होकर पढ़ाई छोड़कर चला जाता है। लेकिन लेखक ने इस व्यवस्था से संघर्ष किया और अपने दृढ़ संकल्प पर आगे बढ़ता गया। इस प्रकार लेखक का एक उद्देश्य तो वाल्मीकि समाज की कठिनाइयों का वर्णन है और दूसरा यह सन्देश देना है कि यदि आपकी इच्छा-शक्ति मजबूत है, आपकी नीयत और मार्ग सही है, तो संसार की कोई भी शक्ति आपका मार्ग नहीं रोक सकती।

निष्कर्ष - इस प्रकार ओमप्रकाश वाल्मीकि अपनी इस आत्मकथा 'जूठन' के द्वारा हरिजनों में चलने वाली दूषित और घृणित परम्पराओं की ओर सबका ध्यान केन्द्रित कराना चाहते थे। सामाजिक असमानता और उच्च वर्गों द्वारा निम्न वर्गों द्वारा किए गए शोषण के बीच के पलने-बढ़ने वाली लेखक की संघर्ष - गाथा और आगे बढ़ने-पढ़ने की अदम्य जिजीविषा युवा पीढ़ी के लिए प्रेरक शक्ति बन गई है। लेखक की यह आत्मकथा कथा तत्त्वों के आधार पर खरी सिद्ध होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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